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Dev Uthani Ekadashi Katha, Shayari, Vidhi In Hindi

Dev Uthani Ekadashi Katha: कहा जाता है की सिर्फ भगवान विष्णु ही एक ऐसे देवता थे जिन्होंने सबसे ज्यादा इस पृथ्वी पर जन्म लिया और लोगो में ज्ञान, धर्म, गलत सही का मार्ग दिखाया। भगवन विष्णु के अनेक रूप है और  इसलिए हम लोग सबसे ज्यादा भगवन विष्णु के अवतारों को मानते है चाहे वो कृष्णा हो, खाटूश्याम हो या फिर साई बाबा ही क्यों न हो।

Dev Uthani Ekadashi Katha

ऐसे माना जाता है की Dev Uthani Ekadashi वाले दिन भगवन विष्णु गहरी योग निंद्रा से उठते है इसलिए इस दिन का महत्व बहुत ही अधिक माना जाता है। तो फिर आज के इस लेख में हमने आपके लिए सबसे अच्छे Dev Uthani Ekadashi shayari or katha साझा की है जिनको आप पढ़ सकते हो और सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर कर सकते हो।

Dev Uthani Ekadashi Katha

उठो देव हमारे उठो इष्ट हमारे खुशियों से आंगन भर दो जितने मित्र-गण रहे सुख-दुख में सहारे। 

देवउठनी एकादशी की समस्‍त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं भगवान विष्‍णु का आशीर्वाद और कृपा से आपके सभी कार्य सफल हों। 

देवउठनी एकादशी के शुभ अवसर पर भगवान विष्णु आपकी सभी मनोकामनायें पूरी करें। 

नींद से जागो अब दशावतार कर ली है तैयारियां अपार मिलकर आज कराएँगे तुलसी विवाह उठो हमारे पालनहार।

हर घर के आँगन में तुलसी तुलसी बड़ी महान है जिस घर में ये तुलसी रहती वो घर स्वर्ग सामान है। 

तुलसी मां दें सबको वरदान खोलें सभी समाधानों के द्वार कभी ना हो आपको कोई परेशानी मां तुलसी से यही प्रार्थना है हमारी देवउठनी एकादशी के शुभ अवसर पर शुभ देवउठनी एकादशी।

तुलसी संग शालिग्राम ब्याहे सज गई उनकी जोड़ी तुलसी विवाह संग लगन शुरू हुए जल्दी ले के आओ पिया डोली शुभ तुलसी विवाह। - Dev uthani ekadashi katha 

गन्ने के मंडप सजायेंगे हम विष्णु- तुलसी का विवाह रचाएंगे हम आप भी होना खुशियों में शामिल तुलसी का विवाह मिलकर कराएंगे हम। 

तुलसी प्रिय विष्णु उठो उठो हे देवा सृष्टि के दाता उठो करो पूर्ण सब काम जिनसे बने जग में हमारा भी नाम। हैप्पी देवउठनी एकादशी!

तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान का आवाहन तो आइए राष्ट्रहित की कामना करते हुए ईश्वर का आवाहन करें! तुलसी विवाह की शुभकामनाएं। 

सबसे सुन्दर वो नज़ारा होगा दीवारों पर दीयों की माला होगी हर आँगन में तुलसी माँ विराजेगी और माँ तुलसी का विवाह होगा।


देवउठनी एकादशी पूजा विधि :

इस दिन अलसुबह जल्दी उठकर सही कामों ने निवृत्त होकर स्नान कर लें और साफ वस्त्र पहन लें. जिसके बाद भगवान विष्णु का स्मरण करें। संध्याकाल को पूजा वाली जगह को साफ करके चूना और गेरू की सहायता से रंगोली बनाएं। 

 इसके साथ ही भगवान विष्णु का चित्र या फिर तस्वीर रखें,ओखली पर भी गेरू के माध्यम से चित्र बना लें. इसके बाद ओखली के पास फल, मिठाई, सिंघाड़े और गन्ना रखें। इसके बाद इसे डालिया से ढक दें। 

रात के समय यहां पर घी के 11 दीपक देवताओं को निमित्त करते हुए जलाएं, इसके बाद घंटी बजाते हुए भगवान विष्णु को उठाएं और बोले- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाए कार्तिक मास। 


भगवान विष्णु को जगाने के लिए इन मंत्रों को आवशय बोले :


”उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।”

Dev Uthani Ekadashi Katha / देव उठानी एकादशी कथा

एक बार की बात है, एक राजा था जिसकी प्रजा बहुत खुश थी। उनके राज्य में एकादशी के दिन न तो कोई भोजन बेचता था और न ही खाता था। सभी ने सिर्फ फल खाया। एक बार प्रभु राजा की परीक्षा लेंगे और सौन्दर्य का रूप धारण कर सड़क किनारे विराजेंगे। राजा वहां से गुजरा और सुंदरता देखकर चकित रह गया। वह सुंदरी से पूछता है कि तुम कौन हो, तुम यहाँ क्यों बैठे हो?

तब भगवान ने सौंदर्य रूप में कहा कि मैं एक जरूरतमंद व्यक्ति हूं। इस देश में मेरा कोई दोस्त नहीं है, मैं किससे मदद मांग सकता हूं? राजा को उसका रूप पसंद आया और उसने कहा कि तुम मेरे महल में प्रवेश करोगे और मेरी रानी के रूप में रहोगे। तब सुंदरी ने कहा कि मैं आपकी बात सुनूंगी लेकिन आपको राज्य की सत्ता मुझे सौंपनी होगी। इस राज्य पर मेरा अधिकार होगा: जो कुछ मैं कहूँगी, तुम खाओगे; खूबसूरती के अंदाज में मोहित राजा कहते हैं कि मैं हर परिस्थिति को स्वीकार करता हूं।

अगले दिन एकादशी का उपवास था लेकिन रानी ने आदेश दिया कि अन्य दिनों की तरह बाजार में खाना बेचा जाए। इतना ही नहीं वह मांस-मछली आदि पकाया जाये। रानी ने राजा से खाने को कहा। राजा ने यह देखा तो राजा ने कहा, आज एकादशी है, इसलिए मैं केवल फल खाऊंगा। रानी ने तब राजा को उसकी शर्त याद दिलाई और कहा कि खाओ वरना मैं तुम्हारे राजकुमार का सिर काट दूंगी। 

जब राजा ने राजकुमार की माँ और सबसे बड़ी रानी से बात की, तो रानी ने कहा: भगवन, राजकुमार को धर्म पर हावी न होने दें। पुत्र तो फिर से मिल जाएगा, लेकिन धर्म की हानि अच्छी नहीं है। इस बीच, उनका राजकुमार बहार से खेलके आया और अपनी माँ की आँखों में आँसू देखकर उससे पूछा कि वह क्यों रो रहा है। जब माँ ने उसे सब कुछ बताया तो इस राजकुमार ने कहा कि मैं अपना सिर देने के लिए तैयार हूँ। मेरे पिता के धर्म की रक्षा की जानी चाहिए। 

राजा दुखी मन से सुंदरी के पास गए और राजकुमार का सिर देने को तैयार हुए। तभी सुंदरी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उनसे कहा, राजन ये तुम्हारी परीक्षा थी और तुम इस कठिन परीक्षा में सफल रहे हो। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वरदान मांगने को कहा तो राजा ने कहा, आपका दिया सब कुछ है, बस हमारा उद्धार कीजिए। उसी समय वहां एक विमान उतरा और राजा अपना राज्य अपने राजकुमार पुत्र को सौंप कर विमान पर बैठ परम धाम को चले गए।

आखिरी शब्द: 

सुंदर रूप और मन की सुंदरता दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। आज के युग में लोगो को कुछ ही दिनों में प्रेम हो जाता है तो इसका अर्थ है की वह सिर्फ बाहरी सुंदरता से मोहित होते है लेकिन वह जिस कन्या/व्यक्ति से मोहित हुए है उसका मन न जाने कितना अशुध्द और बेकार है। कहते है की सुंदरता का मोह नहीं होना चाहिए वरना आपको भविष्य में बहुत कष्ट उठाने पड़ते है।

आशा करता हूँ की आपको यह Dev Uthani Ekadashi Katha पसंद आये होंगे जहाँ हमने आपके लिए Dev Uthani Ekadashi Katha or shayari साझा किये है जिनको आप पढ़ सकते हो और सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों और स्टेटस के माध्यम से शेयर कर सकते है।

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