Jaishankar Prasad Biography in Hindi: अगर आप Jaishankar Prasad ka jivan parichay पढ़ना चाहते है और अपनी परीक्षा में सर्प्रथम अंक लाना चाहते है तो हमने इस लेख में जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय बहुत ही विस्तार पूर्वक साझा किया है जिसको आप पढ़ सकते हो और याद करकर अपने परीक्षा में उत्तीर्ण कर सकते हो।
जयशंकर प्रश्न की जीवनी - Jaishankar Prashad Biography in Hindi
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 को काशी (वर्तमान वाराणसी) के सरायगोवर्धन में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद जी था. काशी के एक सम्पन्न सुँघनी साहू नाम से प्रसिद्ध वैश्य-परिवार में जन्मे जयशंकरप्रसाद के बाल्यकाल में ही इनके पिता देवीप्रसाद तथा बड़े भाई का स्वर्गवास हो गया; अत: अल्पायु में ही लाड़-प्यार में पले प्रसादजी को घर का सारा उत्तरदायित्व वहन करना पड़ा।
Jaishankar Prasad का भाषाओँ का अध्यन
विद्यालयी शिक्षा छोड़कर इन्होंने घर पर ही अंग्रेजी, हिन्दी, बॉग्ला तथा संस्कृत-भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। इन्होंने अपने पैतुक व्यवसाय को करते हुए भी अपनी काव्य-प्रेरणा को जीवित रखा। इनका मन अवसर पाते ही कविता-कामिनी के कानन में भ्रमण करने लगता था। अपने मन में आये भावों को ये दुकान की बही के पन्नों पर लिखा करते थे। इस प्रकार जयशंकरप्रसाद का काव्य-जीवन आरम्भ हुआ।
प्रसादजी का जीवन बहुत सरल था। ये सभा-सम्मेलनों को भीड़ से बहुत दूर रहा करते थे। ये बहुमुखी-प्रतिभा के धनी और भगवान् शिव के उपासक थे। इनके पिता साहित्य-प्रेमी और साहित्यकारों का सम्मान करनेवाले व्यक्ति थे, जिसका प्रसादजी के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। अत्यधिक श्रम तथा राजयक्ष्मा से पीड़ित होने के कारण लगभग 48 वर्ष की अल्पायु में इनका देहावसान हो गया।
जयशंकर प्रश्न का काव्य एवं छायावादी युग में योगदान
'जयशंकरप्रसाद आधुनिक हिन्दी-काव्य के ऐसे प्रथम कवि थे, जिन्होंने अपने काव्य में सूक्ष्म रहस्यवादी अनुभूतियों का चित्रण किया। यही इनके काव्य की प्रमुख विशेषता थी। इनके इस नवीन प्रयोग ने काव्य-जगत् में क्रान्ति उत्पन्न कर दी जिसके परिणामस्वरूप हिन्दी-साहित्य में छायावाद नाम से एक युग का सूत्रपात हुआ। इनके द्वारा रचित “कामायनी' छायावादी युग की अप्रतिम कृति है।
इसमें सभी छायावादी विशेषताओं का समावेश दृष्टिगत होता है। प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य के प्रमुख विषय रहे। इन्होंने काव्य-सृजन के साथ ही हंस” और इन्दु” पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कराया। कामायनी” पर इनको हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन ने “मंगलाप्रसाद पारितोषिक' प्रदान किया था। इन्होंने हिन्दुस्तानी अकादमी द्वारा प्राप्त पुरुस्कार को काशी की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था “काशी नागरी प्रचारिणी सभा' को दान कर दिया।
प्रसादजी का रचनाएँ
प्रसादजी ने कुल 27 कृतियों की रचना की। इनका “कामायनी ' महाकाव्य काव्य का कोर्तिस्तम्भ है। इसमें मनु और श्रद्धों के माध्यम से मानव को हृदय (श्रद्धा) और बुद्धि (इड़ा) के समन्वय का सन्देश दिया गया है।
'चित्राधार' इनका ब्रजभाषा में रचित काव्य-संग्रह है। 'लहर' में प्रसादजी की भ्रावात्मक कविताएँ संगृहीत हैं। झरना इनकी छायावादी कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में सौन्दर्य और प्रेम की अनुभूतियों का मनोहारी चित्रण मिलता है। इनकी कहानियों एवं ऐतिहासिक नाटकों में भारत का अतीत साकार हो उठता है।
- प्रसादजी वस्तुत: चिन्तनशील प्रकृति के व्यक्ति थे। पर्वतीय दृश्यों से इनके काव्य में प्रकृति-चित्रण का मनोहारी रूप मिलता है। नारी- भावना का चित्रण करने में ये विशेष सफल रहे हैं। भारतीय संस्कृति की भावना इनमें कूट-कूटकर भरी है।
- प्रसादजी की भाषा पूर्णत: साहित्यिक, परिमार्जित एवं परिष्कृत थी, जिसमें ओज, माधुर्य के साथ-साथ प्रवाह का गुण । सर्वत्र विद्यमान है। इनकी शब्द-योजना सुगठित है और वाक्य-विन्यास तथा शब्द-चयन अद्वितीय है। अपने स॒क्ष्म भावों को व्यक्त करने के लिए इन्होंने लक्षणा और व्यंजना शब्दशक्तियों का आश्रय लिया। प्रतीकात्मक शब्दावली के प्रयोग में ये अत्यधिक निपुण थे।
- काव्य- शैलियों के विशिष्ट शिल्पी जयशंकरप्रसाद का समस्त काव्य विविध शैलियों के प्रयोग से चमत्कृत है। ये छोटे-छोटे वाक्यों एवं पद-विन्यासों द्वारा गम्भीर भाव भरने में निपुण थे। संगीतात्मकता एवं लय पर आधारित इनकी शैली अत्यन्त सरस एवम मधुर हैं। दार्शनिक विषयों की अभिव्यक्ति में इनकी शैली गम्भीर हो गयी है।
- प्राय: सभी विद्वान् इन्हें एक स्वर में छायावाद का प्रवर्त्तक और मूर्धन्य छायावादी कवि मानते हैं। डॉ० द्वारिकाप्रसाद सक्सेना ने प्रसादजी के साहित्यिक अवदान का मूल्यांकन करते हुए लिखा है--“प्रसाद ने अपनी अलोकिक प्रतिभा डारा जो भी कृतियाँ प्रस्तुत की हैं, वे वास्तव में अनुपम और अद्वितीय हैं, हिन्दी-साहित्य की अनूठी निधियाँ हैं और हिन्दी-साहित्य के ऐतिहास्निक विकास में उनका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है।
आखिरी शब्द:
आशा करता हूँ की आपको अब Jaishankar Prasad Biography in Hindi समझ आ गया होगा। इस लेख में हमने पंडित श्रीराम शर्मा का जीवन परिचय बहुत ही विस्तार पूर्वक समझाया है तो आपको अब कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए Jaishankar Prasad Biography in Hindi समझने में।
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