आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय | Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi

Hazari Prasad Biography in Hindi: हिन्दी में शीर्षस्थ गध लेखकों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की गणना होती है। इन्होंने आजीवन साहित्य-साधना में लगे रहकर हिंदी साहित्य अनेक उत्कृष्ट कृतियाँ प्रदान कीं। उपन्यास एवं निबन्ध विधाओं में इन्हें विशेषता सफलता प्राप्त हुई। हिन्दी-साहित्य में इनके महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करते हुए डॉ० द्वारिका प्रसाद सक्सेना ने कहा हैं कि डॉ० द्विवेदी अपने अद्भुत रचना-कौशल, विविध विचार-प्रदर्शन एवं अनुपम अभिव्यंजना-वैविध्य के कारण साहित्य के क्षेत्र में मूर्धन्य स्थान के अधिकारी हैं।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की जीवनी - Hazari Prasad Biography in Hindi

Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi

पूरा नाम - आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
बचपन का नाम - वैद्यनाथ द्विवेदी
जन्म तिथि - 19 अगस्त 1907
जन्म स्थान - दुबे-का-छपरा, बलिया, (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु तिथि - 19 मई 1979

आचार्य  द्विवेदी जी के पिता का नाम पं० अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिकली था। इनके पिता ज्योतिष विद्या के महानू, ज्ञाता थे; अत वे अपने पुत्र को भी ज्योतिषाचार्य बनाना चाहते थे। इसलिए शिक्षा का प्रारम्भ संस्कृत से हुआ। इन्होंने, अपने पिता की इच्छानुसार इण्टर करने के उपरांत काशी हिन्दू विश्व-विद्यालय से ज्योतिष साहित्य में आचार्य को परीक्षा उत्तीर्ण की। 

सन्‌ 1940 ई० थे हिन्दी एवं संस्कृत के अध्यापक के रूप में शन्ति गये वहाँ अनेक वर्षो तक कार्य करते हुए ये गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के निकट सम्पर्क में आ हक ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यक्ष नियुक्त हुए। कुछ समय तक आपने पंजाब के विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचनात्मक साहित्य रचनाएं नाम - Hazari Prasad Dwivedi Rachnaye

आचार्य द्विवेदीजी की गौरवपूर्ण साहित्य-सेवा के फलस्वरूप सन्‌ 1946 ई० में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हे डी० लिट्‌० की मानद्‌ उपाधि से विभूषित किया और भारत सरकार ने सन्‌ 1957 ई० में पद्मभूषण का अलंकरण प्रदान किया । इन्हें इनकी आलोचनात्मक कृति कबीर” पर मंगलाप्रसाद पारितोंषिक भी प्रदान किया गया। “सूर-साहित्य' की आलोचना पर इन्हें इन्दौर साहित्य समिति ने स्वर्णपदक देकर सम्मानित किया। द्विवेदीजी की साहित्य-चेतना निरन्तर जाग्रत रही और वे आजीवन साहित्य-सृजन में लगे रहे। 

रुग्णावस्था के कारण इनका ७२ वर्ष की आयु में देहावसान हो गया। द्विवेदीजो उच्चकोटि के निबन्धकार, उपन्यासकार, आलोचक, चिन्तक तथा ओधकर्त्ता थे। बाल्यकाल में ही इन्होंने व्योमकेश शास्त्री से कविता लिंखने की कला सीखनी आरम्भ की। शनै: शनै: इनकी साहित्यिक प्रतिभा विलक्षणता को प्राप्त होने लगी। कविंद्र रविन्द्र और बांग्ला के साहित्य का इनके साहित्य पर अत्यधिक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। सिद्ध-साहित्य, जैन-साहित्य, अपभ्रंश साहित्य एवं हे भक्ति-साहित्य को अपनी आलोचनात्मक दृष्टि से आलोकित करके इन्होंने इन साहित्यों का बड़ा उपकार किया। 

Hazari Prasad Dwivedi भाषा-शैली

द्विवेदीजी की भाषा-शैली प्रांजल, मृदुल एवं प्रवाहपूर्ण है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों और पांडित्यपूर्ण वाक्य खंडो की प्रचुरता है। भाषा एवं वर्णनों में मुहावरों तथा अलंकारों की अधिकता के कारण इनके सृजनात्मक साहित्य में कोमलकान्त पदावली की प्रचुरता है, जिससे उसे पढ़ने में काव्यात्मक आनन्द की प्राप्ति होती है।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंध - Hazari Prasad Dwivedi Easy

द्विवेदीजी के जहाँ विद्धत्तापरक शोधपूर्ण निबन्ध हैं, वहीं श्रेष्ठ भावात्मक तथा वैयक्तिक निबन्ध भी हैं। इनके वैयक्तिक निबन्ध भी है इनके व्यक्तिगत निबंध हिन्दी निबन्ध-साहित्य की मूल्यवान्‌ निधि हैं। इनके व्यक्तित्व में विद्कता और सरसता, पाण्डित्य और विदग्धता गम्भीरता और विनोदमयता, प्राचीनता और नवीनता कॉ जो समन्वय मिलता हैं, वह अन्यंत्र दुर्लभ है। अपने निबन्धों में द्विवेदीजी ने बहुत ही सहज ढंग से अनौपचारिक रूप में, “नाखून क्यों बढ़ते हैं', आम फिर बौरा गये'-अशोक के फूल , एक कुत्ता और एक मैना', 'कुटज' आदि की चर्चा की है। इनके निबन्धों का सम्पूर्ण. रसास्वादन करने के लिए जगह-जगह पर बिखरे हुए सांस्कृतिक साहित्य के सन्दर्भों को जानना बहुत आवश्यक है। 

अपनी गद्य कृतियों में इन्होंने गणेषणात्मक, आलोचनात्मक, भावात्मक, व्यंग्यात्मक रण ण शैलियों का प्रयोग मुख्य, रूप से किया है। सांस्कृतिक॑ मूल्यों के विवेचन में इन्होंने संस्कृतनिष्ठ भाषा में लैप्णललुस समीक्षात्मक ग्रन्थों में आलोचनात्मक; ललित easy में भावात्मक, सामाजिक कुंरीतियों एवं परम्पराओं के| व्यंग्यात्मक तथा अपने विचारों कौ पुष्टि के लिए उद्धरणात्मक शैलियों का सर्वत्र प्रयोग किया है। 

  • विश के दन्त
  • नाखून क्यों बढ़ते हैैं
  • वर्षा घनपति से घनश्याम तक
  • कल्पतरु
  • अशोक के फूल
  • मेरी जन्मभूमि
  • गतिशील चिंतन
  • देवदारू
  • घर जोड़ने की माया
  • साहित्य सहचर
  • बसंत आ गया
  • विचार और वितर्क (1954)

इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिक गद्य-साहित्य में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, का महत्त्वपूर्ण स्थान है| ललित निब॑न्धों तथा आलोचना के क्षेत्र में इनका योगदान अविस्म्रणीय है। वास्तव में इन्होंने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अपूर्ण कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न किया और उनमें खूब सफलता भी प्राप्त की। हिन्दी-साहित्य में इनके महत्वपूर्ण विशिष्ट स्थान का मूल्यांकन करते हुए डॉ० शम्भूनाथ सिंह ने उचित ही लिखा है--“आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की हिन्दी-साहित्य को बड़ी देन यह है कि उन्होंने हिन्दी-समीक्षा को एक नयी, उदार और वैज्ञानिक दृष्टि दी है।

प्रस्तुत संकलन में संकलित प्राठ गुरुनानक देव' श्रद्धा-स्तवन है। इसमें मानवतावादी मूल्यों को उभारा गया है प्रस्तुत निबन्ध मानव- मूल्य, प्रस्तुतिकरण, भाषा-शैली, अलंकार आदि सभी दृष्टियों से अनुपम है। इसमें निबन्ध की सभी विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं ।

गुरुनानक देव” आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदीजी द्वारा लिखित एक संस्मरणात्मक निबन्ध है। इस निबन्ध में द्विवेदीजी ने मध्य-युग के महान्‌ सन्त गुरुनानक देव के जीवन, कार्य-कलाप एवं शिक्षाओं का स्मरण करते हुए अपनी भावमई क्षृद्धांजलि व्यक्त की है। इसमें निबन्ध की गिनायी गयी समस्त विशेषताएँ अजुस्यूत हैं। इसका समुचित मूल्यांकन मानव मूल्यों भाषा-शैली, प्रस्तुतिकरण आदि को द्वष्टि में रखकर ही करनां सम्भव है ।

आखिरी शब्द:

आशा करता हूँ की आपको अब Munsi Premchand Biography in Hindi समझ आ गया होगा। इस लेख में हमने आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय बहुत ही विस्तार पूर्वक समझाया है तो आपको अब कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए Munsi Premchand Biography in Hindi समझने में। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी है तो अपने दोस्तों को भी इसका विलोम शब्द समझाए और उनको शेयर करें।

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