Suryakant Tripathi Nirala Biography In Hindi: अगर आप Suryakant Tripathi Nirala ka jivan parichay पढ़ना चाहते है और अपनी परीक्षा में सर्प्रथम अंक लाना चाहते है तो हमने इस लेख में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय बहुत ही विस्तार पूर्वक साझा किया है जिसको आप पढ़ सकते हो और याद करकर अपने परीक्षा में उत्तीर्ण कर सकते हो।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा | Suryakant Tripathi (Nirala) Education
- नाम: सूर्यकांत त्रिपाठी
- उपनाम: ‘निराला’
- जन्म: 21 फरवरी 1899
- आयु: 62 वर्ष
- जन्म स्थान: महिषादल, जिला मेदनीपुर, पश्चिम बंगाल
- पिता का नाम: पंडित रामसहाय
- माता का नाम: ज्ञात नहीं
- पत्नी का नाम: मनोहरा देवी
- पेशा: आर्मी अफसर
- बच्चे: 1 पुत्री
- मृत्यु: 15 अक्टूबर 1961
- मृत्यु स्थान—-
- अवार्ड: विशिष्ट सेवा पदक
प्रकृति से फक्कड़ और व्यवहार से अक्खड़ मुक्त छन्द के प्रवर्तक महाकवि निराला का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले की महिषादल रियासत में पं० रामसहाय त्रिपाठी के यहाँ हुआ था। वास्तव में इनके पिता उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला नामक ग्राम के निवासी थे, किन्तु जीविका के लिए बंगाल आ गये थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा महिषादल के ही विद्यालय में हुई। इन्होंने स्वाध्याय से हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत तथा बाँग्ला का ज्ञान प्राप्त किया। बचपन से ही इनकी कुश्ती, घुड़सवारी और खेलों में अत्यधिक रुचि थी। बालक सूर्यकान्त के सिर से माता-पिता का साया अल्पायु में ही उठ गया था।
निरालाजी को बॉग्ला और हिन्दी-साहित्य का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी का भी पर्याप्त अध्यन किया भारतीय दर्शन में इनकी विशेष रुचि थी।
Suryakant Tripathi का निधन
निरालाजी का पारिवारिक जीवन अत्यन्त असफल और कष्टमय रहा। एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देकर इनकी पत्नी मनोहरा स्वर्ग सिधार गयीं। मनोहरा संगीत एवं हिन्दी-प्रेमी महिला थीं। इसका निराला पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा, किन्तु दुर्भाग्य से सन् 1918 ई० में मनोहरा की अकाल मृत्यु हो गयी। पत्नी के विरह के समय में ही इनका परिचय पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी से हुआ। पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी के सहयोग से इन्होंने समन्वय और “मतवाला' का सम्पादन किया। इनकी कविता 'जुही की कली' ने तत्कालीन काव्य क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी।
Suryakant Tripathi की विपत्तियाँ
निरालाजी को अपने अक्खड़ व्यवहार के कारण जीवन में अत्यधिक आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। आर्थिक दुश्चिन्ताओं के बीच ही इनकी युवा पुत्री सरोज का निधन हो गया, जिससे व्यथित होकर इन्होंने 'सरोज-स्मृति' नामक कविता लिखी। इसमें इन्होंने अपने दुःखपूर्ण जीवन की अभिव्यक्ति करते हुए: लिखा है-- .
दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहें आज जो नहीं कही।
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण,
कर सकता मैं तेरा तर्पण॥
“सरोज-स्मृति' हिन्दी-काव्य का सर्वश्रेष्ठ शोकगीत है।
दुःख और कष्टों के मारे निराला अत्यधिक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। ये बहुत स्पष्टवादी भी थे। इसी कारण ये सदैव साहित्यिक विवाद का केन्द्र रहे। 'जुही की कली” की प्रतिष्ठा को लेकर इनका विवाद और संघर्ष जगजाहिर है। निरालाजी स्वामीरामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द से बहुत प्रभावित थे। इनकी कविताएँ छायावादी, रहस्यवादी और प्रगतिवादी विचारघाराओं पर आधारित है।
महाराणा प्रताप का छायावादी कार्यकाल
महाप्राण निराला का उदय छायावादी कवि के रूप में हुआ। छायावाद के चार स्तम्भों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। कै इन्होने कोमल एवं मधुर भावों पर आधारित छायावादी काव्य के सृजन से अपना काव्य-जीवन प्रारम्भ किया, परन्तु काल की क्रूरता ने इन्हें विद्रोही कवि के रूप में प्रतिष्ठित कर दियए निरालाजी ने “सरस्वती” और “मर्यादा' पत्रिकाओं के निरन्तर अध्ययन से हिंदी का ज्ञान प्राप्त किया। इनके साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ 'जन्मभूमि की वन्दना” नामक कविता की रचना से हुआ।
सन 1929 ई० में इनका 'सरस्वती' पत्रिका में प्रथम लेख प्रकाशित हुआ। जुही की कली' कविता की रचना करके इन्होंने हिंदी-जगत् में अपनी पहचान बना ली। यह अपने समय की सर्वार्चक चर्चित कविता रही; क्योंकि इसके द्वारा निराला ने हिन्दी साहित्य में मुक्त छन्द को स्थापना की। छायावादी लेखक के रूप में प्रसाद, पन्त और महादेवी वर्मा के समकक्ष इनकी भी गणना की जाने लगी। ये छायावाद के चार स्तम्भों में से एक हैं। प्रगतिवादी विचारधारा की ओर उन्मुख होगे मर की श्लोषित एवं पीड़ित वर्ग की व्यथा को अपनी कविता का विषय बनाया।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की रचनाएं
काव्य संग्रह–
- अनामिका (1923)
- परिमल (1930)
- गीतिका (1936)
- अनामिका (द्वितीय)
- तुलसीदास (1939)
- कुकुरमुत्ता (1942)
- अणिमा (1943)
- बेला (1946)
- नये पत्ते (1946)
- अर्चना(1950)
- आराधना (1953)
- गीत कुंज (1954)
- सांध्य काकली
- अपरा (संचयन)
उपन्यास–
- अप्सरा (1931)
- अलका (1933)
- प्रभावती (1936)
- निरुपमा (1936)
- कुल्ली भाट (1938-39)
- बिल्लेसुर बकरिहा (1942)
- चोटी की पकड़ (1946)
- काले कारनामे (1950)
- चमेली
- इन्दुलेखा
कहानी संग्रह
- लिली (1934)
- सखी (1935)
- सुकुल की बीवी (1941)
- चतुरी चमार (1945)
- देवी (1948)
निबंध–
- रवीन्द्र कविता कानन (1929)
- प्रबंध पद्म (1934)
- प्रबंध प्रतिमा (1940)
- चाबुक (1942)
- चयन (1957)
- संग्रह (1963)
कहानी संग्रह–
- लिली (1934)
- सखी (1935)
- सुकुल की बीवी (1941)
- चतुरी चमार (1945)
- देवी (1948)
निराला बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे कविता के अतिरिक्त इन्होने उपन्यास, कहानियाँ , निबन्ध, आलोचना संस्मरण की रचना की परिमल' में सड़ी-गली मान्यताओं के प्रति तीत्र विद्रोह तथा निम्नवर्ग के प्रति इनकी गहरी सहानुभूति स्पष्ट दिखाई देती हैं गीतिका' की मूल-भावना श्रृंगारिक है। इसमें प्रकृति-वर्णन तथा देश-प्रेम को भावना का चित्रण भी मिलता है अनामिका से संगृहीत रचनाएँ निराला के कलात्मक स्वभाव की द्योतक हैं। 'राम की शक्ति-पूजा' में कवि ओज तथा पोरुष प्रकट हुआ है।
निरालाजी ने अपनी सभी रचनाओं में शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ीबोली का प्रयोग किया। विदेशी भाषाओं के शब्दो का प्रयोग भी इन्होंने बिना किसी पूर्वाग्रह के किया ही इनकी भाषा में अनेक स्थानों संस्कृत शुद्ध तत्सम शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता हैं, जिसके फलस्वरूप इनकी भावाभिव्यक्ति कुछ कठिन हो गयी है, विशेषकर छायावादी रचनाओं में भाषा की यह क्लष्टता देखने को मिलती है। इसके विपरीत इनकी प्रगतिवादी रचनाओं की भाषा की यह किलष्टता देखने को मिलती है।इसके विपरित इनकी प्रगतिवादी रचनाओ को भाषा अत्यंत सरल सरस एवम व्यवहारिक है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि भाषा पर निरालाजी का असाधारण अधिकार था।
निरालाजी ने अपनी प्रबन्ध तथा मुक्तक रचनाओं के सृजन में कठिन एवं दुरूह तथा सरल एवं सुबोध दोनों ही शैलियों का प्रयोग किया है। छायावाद पर आधारित इनकी रचनाओं में कठिन एवं दुरूह शैली का प्रयोग देखने को मिलता है तो इनकी प्रगतिवादी रचनाओं में सरल एवं सुबोध शैली का प्रयोग दृष्टिगत होता है। अपने विलक्षण व्यक्तित्व एवं निराले कवित्व के कारण, निरालाजी हिन्दी-काव्य-जगत् में 'महाप्राण” की उपाधि से विभूषित है।
आखिरी शब्द:
आशा करता हूँ की आपको अब Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi समझ आ गया होगा। इस लेख में हमने पंडित श्रीराम शर्मा का जीवन परिचय बहुत ही विस्तार पूर्वक समझाया है तो आपको अब कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi समझने में।
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